साफ कहो सुखी रहो

साफ कहो सुखी रहो 

एक पुरानी कहाबत है। साफ कहो सुखी रहो कहते हैं हमारे  बुजर्ग जो भी कहते थे उसके पीछे एक तर्क होता था। यह कहावत बिल्‍कुल सही है। मेरे तो हजारों अनुभव हैं। इस कहावत को लेकर। दोस्‍तो सुकून से जीनें के सबसे जरूरी होता सच। सच बोलो साफ बोलो। डरो मत , झिझको मत। कभी कभी किसी झिझक में आकर हम वो बातें कह जाते हैं जिन्‍हे हमारा दिल गवारा नही करता। फिर उन बातों से जो सुकून उडता है क्‍या बताऊ मन करता है सब छोड छाड के चले जाऐं। 



वैसे तो इस बात को लेकर हजारो एक्‍सपीरियंस हैं मेरे लेकिन कुछ श्‍ाेयर कर रहा हूॅ। मैं कम्‍प्‍यूटर वर्क का कॉन्‍ट्रेक्‍ट लिया करता था। जिसे मैं और मेरी टीम करती थी। अच्‍छा काम करते थे तो हमारे रेट भी अच्‍छे थे। एक बार एक व्‍यक्ति जिसके पास काफी काम था वो मेरे पास मेरे एक बहुत ही अच्‍छे मित्र को लेकर मेरे पास आया। और हमारी डील फाइनल हुई। मेरे जो मित्र थे उन्‍होनें कभी मेरा साथ दिया था। इस वजह से मैं उनका एहसान मानता था तो मैं काम की मना नही कर सका। इसलिये मैं 50 हजार के काम को साढे बारह हजार रूपये में करनें को तैयार हो गया। क्‍योंकि वो व्‍यक्त्‍िा उससे ज्‍यादा देने का तैयार नही था। और मैं अपने मित्र की वजह से मैं उनके काम को मना नही कर पाया। वो चले गये। जब मैंने अपनी टीम में इस डील की चर्चा की तो सबने काम करनें से मना कर दिया। उन्‍होने कहा कि 50 हजार के काम के कम से कम 40 हजार रूपये तो मिलने चाहिये। इससे कम में वो लोग तैयार नही थे। लेकिन मेरी बात खराब हो रही थी। लेकिन क्‍या करता टीम में बात की। टीम का कैप्‍टन होनें के नाते उन लोगों के हित के बारें में सोचना भी जरूरी था। क्‍योंकि हमारे पास दूसरे भी कॉन्‍ट्रेक्‍ट थे। लेकिन मैं मना भी नही कर सकता था। यकींन मानों उस काम की वजह से मेरे हालत पतली हो गई थे। अब तो यहॉ तक हालत हो गई कि मैने उनका फोन भी उठाना बन्‍द कर दिया। जब कई दिन तक कॉल करनें के बाद भी मैने फोन नही उठाया तो उस व्‍यक्त्‍िा नें मेरे मित्र को फोन किया। मुझे पता था कि मेरे मित्र क्‍यों फोन कर रहे हैं मैने उनका फोन भी नही उठाया। कुछ घण्‍टों बाद मेरे मित्र चलकर खुद मेरे पास आये आैर मुझसे नाराजगी जताने लगे। मैंने झूठ बोलना चाहा कि फोन साईलेन्‍ट मोड पर था। लेकिन वो नही मानें। कहने लगे तुम्‍हारी वजह से मेरी बात खराब हो गई है। इस काम को जल्‍दी से जल्‍दी करके देना था। अब कोई और भी इस काम को करनें को तैयार नही होगा। मैने उनसे बात करनी चाही लेकिन तब तक वो कहने लगे कि और पैसे चाहिये तो बता देते या फिर साफ मना कर देते कि आप को नही करना गुमराह करनें से क्‍या फायदा। और वो नाराज होकर मेरे पास से चले गये। बाद में मुझे सुनने मे आया कि वो लोगों से मेरे बारें में यह कहते फिरते हैं कि वो तो टोपी पहनाता है। 

एक बार मेरे घर मेरे पडोसी एक चैक लेकर आये और उन्‍होनें कहा कि फारूक भाई मुझे समय नही मिलता आप बैंक की तरफ जाओ तो मेरे इस चेक को बैंक में जमा करा देना। मैने उनसे कहा कि फिलहाल बैंक की तरफ जाना नही हैं। तो वो बोले दो - एक दिन में जब भी जाना हो तब डाल देना मुझे कोई जल्‍दी नही हैं। तो फिर मै मना नही कर पाया। लेकिन मेरा पाॅच - छ: दिन तक बैंक की तरफ जाना ही नही हुआ। एक सप्‍ताह बाद वो सज्‍जन तिलमिलाते हुये मेरे पास आये और बोलने लगे कि आपने अभी तक चैक बैंक में जमा नही कर वाया। और मुझे पैसों की सख्‍त जरूरत है। अगर आपको जमा नही करवाना था तो आप मुझसे पहले ही बोल देते। आपकी वजह से मेरा ये काम खराब हो गया। और वो भी नाराज होकर मेरे घर से  चले गये। मेरा स्‍वाभाव ही ऐसा है कि अगर कोई व्‍यक्ति मुझसे नाराजा होकर चला जाऐ तो फिर मुझे टेंशन हो जाती है। इस वजह से मेरा चैन और सुकून उड जाता है। फिर जब एक सप्‍ताह बाद मुझे मिले तो मैने चैक के बारे में पूछ लिया कि शर्मा जी चैक क्लियर हो गया। तो कहने लगे उसमें कुछ कमी थी जिसकी वजह से बैंक ने चैक वापस कर दिया। अगर आप समय पर चैक मुझे वापस कर देते तो मैं उसे सही करवा लेता। अब देखो क्‍या होता है। उस समय भी उनके मन में प्रति नाराजगी थी। 

ऐसे कई अनुभव आपके साथ भी हुये होंगे। मेरे साथ तो कहीं ज्‍यादा हुये हैं।  और एेसी चीजों से जो दिक्‍कत आती हैं उनसे बहुत परेशानी सामने आती है। एक तो हमें टेंशन होती है दूसरी व्‍यक्ति हम पर नाराज होता है। और सम्‍बन्‍ध खराब होते हैं। छोटी छोटी चीजों से जो सुकून की ऐसी तैसी होती है वो अलग से। इतने सारे खराब अनुभवों के बाद मैने निश्‍चय कर लिया कि जो काम नही करना होगा वो साफ मना कर दूॅगा। क्‍योंकि हर व्‍यक्ति जाते वक्‍त यही सीख देकर जाता है कि अगर नही करना था तो पहले ही साफ मना कर देते। तो साेच लिये साफ मना करना है कि नही कर पाऊॅगा। हो सकता है थोडी देर के लिये उस व्‍यक्ति को बुरा लगे लेकिन सुकून शान्ति तो भंग नही होती। और हमारी वजह से किसी का काम भी खराब नही होता। दोस्‍तो मेरी तो समझ में आया गया है साफ कहो सुखी रहो का असली मतलब क्‍या है। 

दोस्‍तो बेकार के झंझट में पडना ही नही चाहिये।  किसी का काम करते हो तो श्रेय भी ठीक से नही मिलता। लेकिन अगर किसी तरह काम खराब हो जाऐ तो नामोशी जरूरी ठीक से मिलती है। अब मैने तो सीख लिया है साफ कहो सुखी रहो। बस सुकून से जीता हैं। क्‍योंकि सुकून जरूरी है। आप भी चाहो तो ये सीख ले सकते हो। सोच लीजिये। और वैसे भी यह मै नही कह रहा हूॅ हमारे बडे बुजर्ग कह कर गये हैं।

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